शिक्षा का नया दौर चला है ।
हाथ मे पुस्तक, कॉपी को ले पढने का जोर चला है ।

कोचिंग, ट्यूशन चहुँओर चला है ।
ज्ञान की साख कुछ भी नही है ।
बस उपाधि का सिरमौर चढा है ।
कबीर, तुलसी, सूर, कालि ।
बाल्मीकि, मीरा और जाबालि ।
तिल-तिल जीवन के रहस्यो का l
आत्ममंथन कर वेद भाष्यो का ।
पथ प्रदर्शक बन सभी का ।
ज्ञान की जङ को बताया ।
अंकुरित बीज जिस तरह होता है मिट्टी में ।
ज्ञान का बीज स्फुटित होता ।
वैसे ही आत्मचेतना से ।
ध्यान ज्ञान की खान हैं ।
जस जल सिंधु समाहि ।
लगा डुबकी मुक्ता मिले ।
न तो देख परछाहि ।
उपाधि बिना ज्ञान के हैं वैसे ही ।
जैसे चांद, तारे, सूर्य के बिना आकाश ।
जीवन का हैं आधार प्रकाश ।
पृथ्वी के सारी जैविक क्रिया का ।
पेङ -पौधे, सभी जीव के हैं संकाश ।
ज्ञान उन्हे भी होता है ।
जो कभी विधालय न गए।
एकलव्य इसके सटीक उदाहरण।
जिसे गाण्डीवधारी अर्जुन न पार सके ।
पारखी ,जिज्ञासु बनिए ।
ज्ञान के पिपासु बनिए ।
आप भी नित नई अपनी ।
सफलता, भावपूर्णता की कहानी लिखिए ।


कवि :-  Rj Anand Prajapati

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