कुछ बनने का गर जुनून हो ।
हालात कितने भी विपरीत या मनहूस हो ।
पर सिर पर गर उसे ही पाने की सवार धुन हो ।
ऊपर से जवानी का उबाल मार रहा खून हो ।
फिर तो मंजिल को पाए बिना कैसा चैन, सुकून हो ।
धरती को नापेंगे ।
अम्बर को थामेंगे ।
पर्वतो को तोड़कर ।
पथ बना देंगे ।
हम वो इंसान हैं ।
पाण्डव सा सोपान है ।
अधिकार पाने के लिए ।
अगर आवश्यकता भी पड़ी तो ।
हम दूसरा कुरूक्षेत्र भी बना देंगे ।
मशहूर कोई हम नही
कर्म की संभाले बागडोर है ।
ये समुद्रो मे न जाने ।
उठती नित्य कैसी हिलकोर हैं ।
और विस्तृत हो जाने की उसमे उठती ज्वार हैं ।
कोई कार्य आप सोचें।
जो न हो सके ।
सब कुछ होगा ।
उसमे से न वर्ण निकाल कर देखो तो यारो ।
हम तो नही को भी सही बना देते है ।
बस नही को कुछ ।
यूं बोल देते है ।
ऐसा कार्य कौन है ।
धरा पर जो हमसे न होगा ।
हमको तो यह ज्ञात हैं ।
कि दुनिया की कोई भी जंग ।
अंग से नही बल्कि हौंसले और उमंग से जीती जाती है ।
धार तलवारो मे नही अपनी सोच मे होनी चाहिए ।
आग अपने अंदर भी है बस घर्षण होनी चाहिए ।
इस दुनिया के जंग मे हम हारने के लिए नही ।
जीतने के लिए पैदा हुए हैं ।
अपना तो यही मंत्र हैं ।
राजनीति से कूटनीति तक ।
वाणी मे तार्किकता और मधुरता लाइए ।
आप दुनिया को जीतने का माद्दा रखते है ।


कवि :- Rj Anand Prajapati.

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