ये चिरागो की रोशनी ।
हवाओ का झोंका ।
ये कैसा उनका विपरीत नाता ।
वो बुझाने को आतुर ।
वो जलने को आतुर ।
मगर जो भी हैं ।
हैं संघर्ष दिखता ।
चिरागो ने ठाना।
अपने को जाना ।
जलते रहेंगे हम मरते दम तक ।
तूफानो के साथ गर वर्षा भी आ जाए ।
फिर भी यह लौं बुझ न पाएगी ।
तुम जितना दबाओगे ।
उतना उठूंगा ।
पतंगो की भाँति ।
लिए दृढ़संकल्प की बाती(डोर) ।
हवाओ के विपरीत चलूंगा ।
ये दुनिया हैं भाई ।
गिराएगी तुमको ।
सताएगी तुमको फंसाएगी तुमको।
मगर तुम भी ऐसे ।
न हार मान लेना ।
जो जलता है उसको ।
और भी जलाओ ।
तुम प्रदीप्त होना न छोङो।
अपनी रश्मि फैलाओ ।
हवाओ का बवंडर  (षड्यंत्र )।
या चक्र हो कोई गर ।
तुम उसमे न आना ।
ये बैरी जमाना ।
बस आगे कदम ।
मंजिल की तरफ तुम बढाओ ।
कांटो के पथ पर भी चलते रहो तुम ।
भले लहू से ।
पाँव छलनी हो जाए ।
मगर वो शोला न बुझने पाए ।
एक दिन जब तुम बनोगे सफल तो ।
ये दुनिया भी मानेगी, तुम्हे पहचानेगी ।
ये शोहरत,रूतबा,सरनाम की निशानी ।
बूटा -बूटा,पत्ता -पत्ता भी गाता रहेगा ।
ये हवाओ का झोंका बहता रहेगा।
हवाओ का काम है बहना ।
दीपक का काम हैं जलना ।
वो अपना काम करती है ।
हम अपना काम करते है ।
तरक्की की सोचो ।
गूढ़ रहस्यो को ढूंढो ।
लगी हैं जो चिंगारी ।
उसे ज्वाला सी कर दो ।
हवाओ को अपने तुम आगोश मे ले लो ।
जितने भी लोग तुम्हे फूंक मारेंगे ।
ये शोला और भी भङकता जाता है ।
विरोधी न होते तो प्रगति न होती ।
अपने नाम की कोई निशानी न होती ।
राख होकर कही हम पड़े होते कोने में ।
न अपनी मंजिल कुछ होती ।
न ये ज्योति ही जलती ।
दिल पर न कोई कटार सी चलती।
ये जख्मो का दर्द बयां न होता ।
ये प्रकृति की रीति है यही समझाती ।
आग हैं कही तो कही है पानी ।
बुढापा है कही तो हैं कही जवानी।
ऋण-ऋण मिलकर है धन बनता।
ऐसे ही कुछ सार समझ मे आती।
विरोधी होने का मतलब यही है ।
कि प्रगति आप अवश्य कर रहे है।
तभी तो जलने वाले जल रहे है ।
लोग जलते है तो जलने दो ।
तुम बस अपने यश की रोशनी फैलाओ।

कवि :- Rj Anand Prajapati

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