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शीर्षक:-**=प्राकृतिक छटा==**


दिलकश नजारे ये चांद सितारे ।
दिल को लुभाते है सब सारे ।
प्राकृतिक की गोंद मे ।
खुशबू मिट्टी की सोंध में ।
बचपन मे खेले ।
ऐसा लगता था ।
जैसे कोई बिस्तर मखमल हो ।
सब रोग -शोक भागे ।
जो ब्रह्ममुहूर्त मे रोज जागे ।
ध्यान, योग करके ग्रंथो को वाचे ।
आम्र काष्ठ लेकर यज्ञ करे हम ।
अपने को तो हैं ही प्राकृतिक को शुद्ध करें हम ।
हिमालय के बीहङ मे ।
आयुर्वेदिक जङी -बूटी सब ।
बिखरी पड़ी है चारो तरफ सब ।
वो मां गंगा का पानी ।
देवदार,चीङ द्रुम विशालाक्षी ।
पर्यावरण ये बङा मनमोहक ।
वायु हैं बहती मंद -मंद अवलोकत।
पंछी-पखेरू, मर्कट और गिलहरी।
तृण हैं उसके नीचे सब तो हरी-भरी ।
कुदरत ही तो है अपनी विरासत ।
दुनिया का हरेक कोना हिरासत ।
सम्भालो तुम इसको हे!जननायक।
पेङो की दुनिया जब तक रहेगी ।
अपनी भी दुनिया चलती रहेगी ।
जो दोहन करोगे सभी मरोगे ।
गलती एक की सभी भुक्तोगे।
जागो हे! मनु जागो , हे !मनु जागो ।

कवि:-Rj Anand Prajapati

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